05 अक्टूबर 2024
सुप्रीम कोर्ट में छत्तीसगढ़ राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग का प्रतिनिधित्व: सोनल कुमार गुप्ता की विशेष उपलब्धि
अमृत टुडे । विगत दिनों नई दिल्ली स्थित सर्वोच्च न्यायालय के एडमिनिस्ट्रेटिव बिल्डिंग परिसर में आयोजित दो दिवसीय कार्यशाला ने बाल अधिकार संरक्षण के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण चर्चा का मंच प्रदान किया। इस कार्यशाला का उद्देश्य विकलांगता के साथ जी रहे बच्चों के अधिकारों की रक्षा पर राष्ट्रीय हितधारकों के साथ परामर्श करना था। यह कार्यशाला यूनिसेफ की सहभागिता से आयोजित की गई थी, और इसका उद्घाटन भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) श्री डी. वाई. चंद्रचूड़ ने किया।
छत्तीसगढ़ राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग के सदस्य सोनल कुमार गुप्ता ने इस महत्वपूर्ण आयोजन में राज्य का प्रतिनिधित्व किया। यह उनके जीवन की एक विशेष उपलब्धि रही, क्योंकि उन्हें सीधे मुख्य न्यायाधीश से मिलने और इस महत्वपूर्ण विषय पर संवाद करने का अवसर प्राप्त हुआ। उन्होंने इस कार्यशाला में छत्तीसगढ़ राज्य की ओर से बाल अधिकार संरक्षण और विकलांग बच्चों के अधिकारों की रक्षा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को जाहिर किया।
कार्यशाला का विषय: विकलांग बच्चों के अधिकारों की रक्षा
कार्यशाला का प्रमुख उद्देश्य विकलांग बच्चों के अधिकारों की रक्षा और उनके समावेशी विकास पर चर्चा करना था। इस कार्यक्रम में यूनिसेफ की कंट्री हेड सिंथिया कैफेरी, सुप्रीम कोर्ट के किशोर न्याय समिति के अध्यक्ष जस्टिस बी.वी. नागरत्न, केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्री श्रीमती अन्नपूर्णा देवी समेत कई उच्च स्तरीय अधिकारी और न्यायिक सदस्य उपस्थित थे।
मुख्य न्यायाधीश श्री डी. वाई. चंद्रचूड़ ने अपने उद्घाटन भाषण में समाज के प्रति विकलांग बच्चों की जिम्मेदारियों और उनके अधिकारों पर गहन चर्चा की। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि हमें इन बच्चों के प्रति समाज की धारणा बदलनी होगी और उनकी शिक्षा, स्वास्थ्य, और समग्र विकास के लिए विशेष कदम उठाने होंगे। इस आयोजन में बाल अधिकार संरक्षण की महत्ता और विकलांग बच्चों के समावेशी विकास के प्रति समाज की जिम्मेदारी पर गहन मंथन किया गया।
सोनल कुमार गुप्ता की भागीदारी और योगदान
सोनल कुमार गुप्ता ने इस सम्मेलन में छत्तीसगढ़ राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग का प्रतिनिधित्व करते हुए, राज्य में बाल अधिकारों के संरक्षण के लिए किए जा रहे कार्यों पर प्रकाश डाला। उन्होंने विकलांग बच्चों की शिक्षा और सामाजिक समावेशिता के महत्व को रेखांकित किया, और यह बताया कि राज्य स्तर पर उनके अधिकारों की रक्षा के लिए क्या-क्या कदम उठाए जा रहे हैं।
गुप्ता ने कहा कि विकलांग बच्चों के साथ होने वाली भेदभावपूर्ण व्यवहारों को समाप्त करने के लिए नीतिगत स्तर पर बदलाव आवश्यक है। उन्होंने छत्तीसगढ़ में विकलांग बच्चों के विकास के लिए राज्य सरकार और विभिन्न संगठनों के समन्वय से चलाए जा रहे कार्यक्रमों की जानकारी दी। उनका यह कहना था कि विकलांग बच्चों को समान अधिकार और अवसर दिए जाने चाहिए ताकि वे समाज के मुख्यधारा में शामिल हो सकें और अपनी पूरी क्षमता को प्राप्त कर सकें।
CJI के साथ संवाद: एक विशेष अवसर
सोनल कुमार गुप्ता के लिए यह अवसर अत्यंत विशेष था क्योंकि उन्हें भारत के मुख्य न्यायाधीश श्री डी. वाई. चंद्रचूड़ से मुखातिब होने का मौका मिला। उन्होंने कहा, “CJI साहब से मिलना मेरे जीवन की एक बड़ी उपलब्धि है। यह अवसर मेरे लिए बहुत प्रेरणादायक रहा और इससे मुझे बाल अधिकार संरक्षण के क्षेत्र में और भी अधिक दृढ़ता के साथ काम करने की प्रेरणा मिली है।”
CJI चंद्रचूड़ ने अपने संबोधन में कहा कि विकलांग बच्चों के अधिकारों की रक्षा करना केवल कानून का विषय नहीं है, बल्कि यह समाज की नैतिक जिम्मेदारी भी है। उन्होंने न्यायपालिका की भूमिका को रेखांकित करते हुए कहा कि कानून के माध्यम से इन बच्चों के लिए अधिक समावेशी समाज का निर्माण किया जाना चाहिए।
अन्य प्रमुख वक्ता और उपस्थित गणमान्य
इस दो दिवसीय कार्यशाला में देश के विभिन्न उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों, महिला और बाल विकास विभाग के प्रमुख सचिवों, पुलिस विभाग के आईजी स्तर के अधिकारियों, और विभिन्न राज्य बाल संरक्षण आयोग के अध्यक्षों ने भाग लिया। उपस्थित गणमान्य व्यक्तियों में से प्रमुख थे –
- जस्टिस कोटेश्वर सिंह (सुप्रीम कोर्ट),
- हिमानी शरद (सुप्रीम कोर्ट के जूनाइन जस्टिस कमेटी की सचिव),
- हरिश टंडन (कोलकाता हाई कोर्ट),
- आनंद पाठक (मध्य प्रदेश हाई कोर्ट),
- रेखा पाली (दिल्ली हाई कोर्ट),
- वीरेन (गुजरात हाई कोर्ट),
- अनिल मलिक (महिला और बाल विकास विभाग के सचिव)।
यूनिसेफ की चाइल्ड प्रोटेक्शन की प्रमुख सोलेदेड हेरो और छत्तीसगढ़ यूनिसेफ की चेतन देसाई ने भी कार्यक्रम में भाग लिया और बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए किए जा रहे अंतरराष्ट्रीय प्रयासों पर जानकारी दी।
कार्यशाला के मुख्य मुद्दे और परिणाम
कार्यशाला में मुख्य रूप से विकलांग बच्चों के अधिकारों की रक्षा, उनके शिक्षा और स्वास्थ्य में सुधार, और उनके सामाजिक समावेशिता पर विचार-विमर्श किया गया। इसमें यह भी चर्चा की गई कि कैसे नीतिगत और कानूनी स्तर पर बदलाव लाकर इन बच्चों के जीवन को बेहतर बनाया जा सकता है।
कार्यक्रम के अंत में, यह निष्कर्ष निकला कि विकलांग बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए समाज के सभी हितधारकों को मिलकर काम करना होगा। इसमें सरकार, न्यायपालिका, सामाजिक संगठनों और नागरिक समाज की सामूहिक जिम्मेदारी है।
छत्तीसगढ़ राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की भूमिका
छत्तीसगढ़ राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने इस कार्यशाला में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सोनल कुमार गुप्ता ने आयोग की ओर से विकलांग बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए किए जा रहे प्रयासों की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि आयोग द्वारा राज्य में विकलांग बच्चों के लिए विशेष शिक्षा योजनाएं, स्वास्थ्य सुविधाएं, और रोजगार के अवसर उपलब्ध कराए जा रहे हैं।
गुप्ता ने यह भी बताया कि आयोग ने विकलांग बच्चों के लिए कानूनी सहायता के प्रावधानों को मजबूत करने के लिए कई नए कदम उठाए हैं। इसके अलावा, सामाजिक जागरूकता कार्यक्रमों के माध्यम से जनता को विकलांग बच्चों के अधिकारों और उनकी सुरक्षा के प्रति संवेदनशील बनाने के लिए काम किया जा रहा है।
बाल अधिकार संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम
सुप्रीम कोर्ट द्वारा आयोजित इस दो दिवसीय कार्यशाला ने बाल अधिकार संरक्षण के क्षेत्र में एक नई दिशा प्रदान की है। विकलांग बच्चों के अधिकारों की रक्षा के प्रति समाज की जिम्मेदारियों को पहचानने और उन्हें सशक्त बनाने के लिए किए गए इस प्रयास में, छत्तीसगढ़ राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग के सदस्य सोनल कुमार गुप्ता ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
इस कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य विकलांग बच्चों के समावेशी विकास के लिए नीतिगत सुधार और कानूनी प्रावधानों को सुदृढ़ करना था। इसमें भाग लेने वाले सभी गणमान्य व्यक्तियों ने इस बात पर सहमति जताई कि बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए समाज के हर तबके को अपनी जिम्मेदारियों को समझना और उन्हें निभाना होगा।
सोनल कुमार गुप्ता ने इस अवसर पर कहा कि वह इस कार्यशाला से प्राप्त अनुभवों का उपयोग छत्तीसगढ़ में बाल अधिकार संरक्षण के लिए और भी प्रभावी कदम उठाने में करेंगे। उनका यह मानना है कि विकलांग बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा केवल कानूनी और नीतिगत सुधारों तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि समाज के हर व्यक्ति की संवेदनशीलता और जागरूकता इस दिशा में महत्वपूर्ण है।
यह कार्यशाला विकलांग बच्चों के अधिकारों की रक्षा के प्रति समाज को और अधिक जागरूक और जिम्मेदार बनाने का एक महत्वपूर्ण कदम थी, और इसमें छत्तीसगढ़ राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग के योगदान को विशेष रूप से सराहा गया।