रायपुर, 01 अक्टूबर 2024
अमृत टुडे ।
पिछले कई दिनों से दिवंगत पंचायत शिक्षक अनुकंपा संघ के हितग्राही अपनी मांगों को लेकर संघर्ष कर रहे हैं। सरकार बनने से पहले अनुकंपा नियुक्ति को लेकर बड़े-बड़े वादे किए गए थे, परंतु अब वे वादे केवल बातें बनकर रह गए हैं। इन हितग्राहियों का दर्द और संघर्ष लगातार बढ़ता जा रहा है। रायपुर के दूर एक पंडाल में ये हितग्राही अपनी आवाज़ उठाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, जहां न तो कोई सुविधाएं हैं और न ही पानी, बाथरूम जैसी बुनियादी जरूरतें उपलब्ध हैं। इस स्थिति में भी कोई अधिकारी या जनप्रतिनिधि उनकी सुध लेने नहीं आया है, जिससे उनकी निराशा और बढ़ती जा रही है।
इस संघर्ष का सबसे मार्मिक उदाहरण है एक 80 वर्ष की वृद्ध महिला, जो अपने बेटे के निधन के बाद अपनी बहू को अनुकंपा नियुक्ति दिलवाने के लिए दर-दर भटक रही है। यह महिला अपने बेटे की जगह अपनी बहू को नौकरी दिलाने की उम्मीद में बार-बार दरवाजों पर दस्तक दे रही है, परंतु उसकी सुनवाई कहीं नहीं हो रही है। प्रशासन इस मामले में पूरी तरह उदासीन बना हुआ है। सवाल यह है कि आखिर कब तक इस तरह से पीड़ित परिवार प्रशासन की लापरवाही का शिकार होते रहेंगे?
सरकार द्वारा बार-बार वादे किए जाते हैं कि दिवंगत कर्मचारियों के परिजनों को अनुकंपा नियुक्ति दी जाएगी, ताकि उनका जीवन यापन सुचारू रूप से चल सके। परंतु यह वादा वास्तविकता में बहुत पीछे छूट चुका है। अनुकंपा के हितग्राही अपनी मांगों को लेकर दिन-रात संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन उनकी आवाज़ न तो सरकार तक पहुँच रही है और न ही प्रशासन तक। उनके लिए यह संघर्ष केवल एक नौकरी का सवाल नहीं है, बल्कि यह उनके परिवार के भविष्य का सवाल है।
रायपुर में एक ओर 1 अक्टूबर 2024 को सियान सम्मेलन हो रहा है, जहां बड़े-बड़े वादे किए जाएंगे और योजनाएं बनाई जाएंगी। परंतु प्रश्न यह उठता है कि क्या इस सम्मेलन के माध्यम से उन लोगों की समस्याओं का समाधान होगा, जो अनुकंपा नियुक्ति के लिए वर्षों से संघर्ष कर रहे हैं? यह विडंबना है कि जहां एक ओर सियान सम्मेलन जैसी बड़ी-बड़ी योजनाओं पर ध्यान दिया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर वास्तविक समस्याओं को नजरअंदाज किया जा रहा है।
वृद्ध महिला की तरह कई और परिवार हैं जो अपने दिवंगत परिजनों की अनुकंपा नियुक्ति के इंतजार में संघर्षरत हैं। इनके परिवारों के लिए यह संघर्ष न केवल आर्थिक तंगी से बचने का है, बल्कि यह उनके आत्मसम्मान और अधिकारों की लड़ाई भी है। अनुकंपा का प्रावधान सरकार द्वारा उन परिवारों की मदद के लिए बनाया गया था, जिन्होंने अपने प्रियजनों को खो दिया है और जो आर्थिक रूप से इस नुकसान का सामना नहीं कर सकते। परंतु जब यह प्रावधान ही अमल में नहीं आता, तो उन परिवारों के लिए संघर्ष और पीड़ा का अंत कैसे हो सकता है?
इन संघर्षरत हितग्राहियों की मांगें बहुत सरल हैं—उन्हें अनुकंपा नियुक्ति दी जाए ताकि उनके परिवार आर्थिक और सामाजिक रूप से सुरक्षित रह सकें। परंतु, जब तक प्रशासन और सरकार इस मुद्दे पर संजीदगी से ध्यान नहीं देते, तब तक यह संघर्ष चलता रहेगा। वृद्ध महिला का मामला केवल एक उदाहरण है, परंतु ऐसे अनगिनत उदाहरण रोज़ सामने आ रहे हैं।
अनुकंपा नियुक्ति की प्रक्रिया सरल और पारदर्शी होनी चाहिए, ताकि उन परिवारों को जल्दी से जल्दी राहत मिल सके जो अपने प्रियजनों को खोने के बाद असहाय हो चुके हैं। अनुकंपा नियुक्ति केवल एक औपचारिकता नहीं होनी चाहिए, बल्कि इसे एक जिम्मेदारी के रूप में देखा जाना चाहिए, जिसे सरकार को पूरा करना चाहिए। यदि किसी कर्मचारी के परिवार को अनुकंपा नियुक्ति नहीं मिलती, तो यह केवल आर्थिक संकट का सवाल नहीं होता, बल्कि यह उस परिवार की पूरी सामाजिक और भावनात्मक संरचना को प्रभावित करता है।
रायपुर में सियान सम्मेलन के दौरान यह उम्मीद की जा रही है कि सरकार इन मुद्दों पर ध्यान देगी और इन संघर्षरत परिवारों की समस्याओं का समाधान करेगी। परंतु अगर ऐसा नहीं होता, तो यह सम्मेलन भी केवल एक औपचारिकता बनकर रह जाएगा, जैसे कई सरकारी घोषणाएं और योजनाएं बनकर रह जाती हैं।
सरकार को चाहिए कि वह इस विषय पर गंभीरता से विचार करे और जल्द से जल्द अनुकंपा नियुक्तियों का समाधान करे। इसके साथ ही, अनुकंपा नियुक्ति की प्रक्रिया को और अधिक सरल और पारदर्शी बनाना चाहिए, ताकि किसी भी परिवार को इस तरह से दर-दर भटकने की जरूरत न पड़े।
यह समय है कि सरकार और प्रशासन अपनी जिम्मेदारी समझें और उन परिवारों की मदद करें जो अपने प्रियजनों को खो चुके हैं। अनुकंपा का प्रावधान उन परिवारों के लिए है जो असहाय हो चुके हैं और जिनके पास कोई अन्य साधन नहीं बचा है। इस प्रावधान को सही समय पर लागू करना सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी होनी चाहिए, ताकि ऐसे परिवारों को सम्मान और सुरक्षा मिल सके।
वृद्ध महिला का संघर्ष उन सभी परिवारों के संघर्ष का प्रतीक है, जो अनुकंपा नियुक्ति के लिए अपनी आवाज़ उठा रहे हैं। अब समय आ गया है कि सरकार इन परिवारों की आवाज़ सुने और उन्हें उनका हक दिलाने के लिए ठोस कदम उठाए।