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रायपुर, 23 नवम्बर 2024

अमृत टुडे। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने गुरु तेगबहादुर के 24 नवंबर को शहीदी दिवस पर उन्हें नमन किया है। इस अवसर पर साय ने कहा कि सिख धर्म के नौवें गुरू तेगबहादुर जी मानवीय धर्म और वैचारिक स्वतंत्रता के लिए अपना बलिदान देने वाले एक क्रांतिकारी युगपुरुष के रूप मे जाने जाते हैं। समस्त मानवता के लिए दिये गये उनके बलिदान के कारण उनको ‘हिंद की चादर’ कहा गया है। साय ने कहा कि गुरु तेग बहादुर जी का जीवन और शिक्षाएं आज भी प्रासंगिक हैं। धर्म की रक्षा के लिए दिया गया उनका बलिदान सदैव याद रखा जाएगा।

हाल ही में नौवें सिख गुरु, गुरु तेग बहादुर (Guru Tegh Bahadur) के 400वें प्रकाश पर्व (जन्म शताब्दी) को चिह्नित करने के लिये उनके जन्म स्थान गुरुद्वारा गुरु के महल (Gurdwara Guru Ke Mahal) में अखंड पाठ (Sri Akhand Path) का उद्घाटन किया गया।

प्रमुख बिंदु
गुरु तेग बहादुर (1621-1675):

गुरु तेग बहादुर नौवें सिख गुरु थे, जिन्हें अक्सर सिखों द्वारा ‘मानवता के रक्षक’ (श्रीष्ट-दी-चादर) के रूप में याद किया जाता था।
गुरु तेग बहादुर एक महान शिक्षक के अलावा एक उत्कृष्ट योद्धा, विचारक और कवि भी थे, जिन्होंने आध्यात्मिक, ईश्वर, मन और शरीर की प्रकृति के विषय में विस्तृत वर्णन किया।
उनके लेखन को पवित्र ग्रंथ ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ (Guru Granth Sahib) में 116 काव्यात्मक भजनों के रूप में रखा गया है।
ये एक उत्साही यात्री भी थे और उन्होंने पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में उपदेश केंद्र स्थापित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
इन्होंने ऐसे ही एक मिशन के दौरान पंजाब में चाक-नानकी शहर की स्थापना की, जो बाद में पंजाब के आनंदपुर साहिब का हिस्सा बन गया।
गुरु तेग बहादुर को वर्ष 1675 में दिल्ली में मुगल सम्राट औरंगज़ेब के आदेश के बाद मार दिया गया।
सिख धर्म:

पंजाबी भाषा में ‘सिख’ शब्द का अर्थ है ‘शिष्य’। सिख भगवान के शिष्य हैं, जो दस सिख गुरुओं के लेखन और शिक्षाओं का पालन करते हैं।
सिख एक ईश्वर (एक ओंकार) में विश्वास करते हैं। इनका मानना है कि उन्हें अपने प्रत्येक काम में भगवान को याद करना चाहिये। इसे सिमरन कहा जाता है।
सिख अपने पंथ को गुरुमत (गुरु का मार्ग- The Way of the Guru) कहते हैं। सिख परंपरा के अनुसार, सिख धर्म की स्थापना गुरु नानक (1469-1539) द्वारा की गई थी और बाद में नौ अन्य गुरुओं ने इसका नेतृत्व किया।
सिख धर्म का विकास भक्ति आंदोलन और वैष्णव हिंदू धर्म से प्रभावित था।
खालसा (Khalsa) प्रतिबद्धता, समर्पण और एक सामाजिक विवेक के सर्वोच्च सिख गुणों को उजागर करता है।
खालसा ऐसे पुरुष और महिलाएँ हैं, जिन्होंने सिख बपतिस्मा समारोह में भाग लिया हो और जो सिख आचार संहिता एवं परंपराओं का सख्ती से पालन करते हैं तथा पंथ की पाँच निर्धारित भौतिक वस्तुओं – केश, कंघा, कड़ा, कच्छा और कृपाण को धारण करते हैं।
सिख धर्म व्रत, तीर्थ स्थानों पर जाना, अंधविश्वास, मृतकों की पूजा, मूर्ति पूजा आदि अनुष्ठानों की निंदा करता है।
यह उपदेश देता है कि विभिन्न नस्ल, धर्म या लिंग के लोग भगवान की नज़र में समान हैं।
सिख साहित्य:
आदि ग्रंथ को सिखों द्वारा शाश्वत गुरु का दर्जा दिया गया है और इसी कारण इसे ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ के नाम से जाना जाता है।
दशम ग्रंथ के साहित्यिक कार्य और रचनाओं को लेकर सिख धर्म के अंदर कुछ संदेह और विवाद है।
शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति:
यह समिति पूरे विश्व में रहने वाले सिखों का एक सर्वोच्च लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित निकाय है, जिसे धार्मिक मामलों और सांस्कृतिक तथा ऐतिहासिक स्मारकों की देखभाल के लिये वर्ष 1925 में संसद के एक विशेष अधिनियम के तहत स्थापित किया गया था।

सिख धर्म के दस गुरु
गुरु नानक देव (1469-1539)

ये सिखों के पहले गुरु और सिख धर्म के संस्थापक थे।
इन्होंने ‘गुरु का लंगर’ की शुरुआत की।
वह बाबर के समकालीन थे।
गुरु नानक देव की 550वीं जयंती पर करतारपुर कॉरिडोर को शुरू किया गया था।
गुरु अंगद (1504-1552)

इन्होंने गुरु-मुखी नामक नई लिपि का आविष्कार किया और ‘गुरु का लंगर’ प्रथा को लोकप्रिय किया।
गुरु अमर दास (1479-1574)

इन्होंने आनंद कारज विवाह (Anand Karaj Marriage) समारोह की शुरुआत की।
इन्होंने सिखों के बीच सती और पर्दा व्यवस्था जैसी प्रथाओं को समाप्त कर दिया।
ये अकबर के समकालीन थे।
गुरु राम दास (1534-1581)

इन्होंने वर्ष 1577 में अकबर द्वारा दी गई ज़मीन पर अमृतसर की स्थापना की।
इन्होंने अमृतसर में स्वर्ण मंदिर (Golden Temple) का निर्माण शुरू किया।
गुरु अर्जुन देव (1563-1606)

इन्होंने वर्ष 1604 में आदि ग्रंथ की रचना की।
इन्होंने स्वर्ण मंदिर का निर्माण पूरा किया।
वे शाहिदीन-दे-सरताज (Shaheeden-de-Sartaj) के रूप में प्रचलित थे।
इन्हें जहाँगीर ने राजकुमार खुसरो की मदद करने के आरोप में मार दिया।
गुरु हरगोबिंद (1594-1644)

इन्होंने सिख समुदाय को एक सैन्य समुदाय में बदल दिया। इन्हें “सैनिक संत” (Soldier Saint) के रूप में जाना जाता है।
इन्होंने अकाल तख्त की स्थापना की और अमृतसर शहर को मज़बूत किया।
इन्होंने जहाँगीर और शाहजहाँ के खिलाफ युद्ध छेड़ा।
गुरु हर राय (1630-1661)

ये शांतिप्रिय व्यक्ति थे और इन्होंने अपना अधिकांश जीवन औरंगजेब के साथ शांति बनाए रखने तथा मिशनरी काम करने में समर्पित कर दिया।
गुरु हरकिशन (1656-1664)

ये अन्य सभी गुरुओं में सबसे छोटे गुरु थे और इन्हें 5 वर्ष की आयु में गुरु की उपाधि दी गई थी।
इनके खिलाफ औरंगज़ेब द्वारा इस्लाम विरोधी कार्य के लिये सम्मन जारी किया गया था।
गुरु तेग बहादुर (1621-1675)

इन्होंने आनंदपुर साहिब की स्थापना की।
गुरु गोबिंद सिंह (1666-1708)

इन्होंने वर्ष 1699 में ‘खालसा’ नामक योद्धा समुदाय की स्थापना की।
इन्होंने एक नया संस्कार “पाहुल” (Pahul) शुरू किया।
ये मानव रूप में अंतिम सिख गुरु थे और उन्होंने ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ को सिखों के गुरु के रूप में नामित किया।

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