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बिलासपुर, 26 अगस्त 2024

अमृत टुडे । प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय की मुख्य शाखा टेलिफोन एक्सचेंज रोड स्थित राजयोग भवन में कृष्ण जन्माष्टमी का कार्यक्रम बहुत ही धूमधाम से मनाया गया। छोटे-छोटे बच्चे कृष्ण और राधा बनकर के आए और कृष्ण के गानों पर अपनी प्रस्तुति दी।

सेवाकेन्द्र संचालिका बीके स्वाति दीदी ने बताया कि हर एक माता अपने बच्चे को नैनो का तारा और दिल का दुलारा समझती है परंतु फिर भी वह श्रीकृष्ण को सुंदर मनमोहन चित्त चोर आदि नामों से पुकारती है। वास्तव में श्री कृष्ण का सौंदर्य चित्त को चुरा ही लेता है। जन्माष्टमी के दिन जिस बच्चे को मोर मुकुट पहनाकर मुरली हाथ में देते हैं लोगों का मन उस समय उस बच्चे के नाम, रूप, देश व काल को भूलकर कुछ क्षणों के लिए श्रीकृष्ण की ओर आकर्षित हो जाता है।

कृष्ण जिनके लिए गायन है वह 16 कला संपूर्ण, संपूर्ण निर्विकारी, मर्यादा पुरुषोत्तम परम अहिंसक थे। इस कलियुगी सृष्टि में एक भी ऐसा व्यक्ति नहीं होगा जिसकी वृत्ति, दृष्टि दुषित न हो, जिसके मन पर क्रोध का भूत सवार न हुआ हो अथवा जिसके चित्त पर मोह, अहंकार का न हो। परन्तु श्रीकृष्ण जी ही ऐसे थे जिनकी दृष्टि, वृत्ति कलुषित नहीं हुई, जिनके मन पर कभी क्रोध का प्रहार नहीं हुआ, कभी लोभ का दाग नहीं लगा। वे नष्टोमोहा, निरहंकारी तथा मर्यादा पुरूषोत्तम थे। उनको सम्पूर्ण निर्विकारी कहने से ही सिद्ध है कि उनमें किसी प्रकार का रिंचक मात्र भी विकार नहीं था। जिनमें काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार अंश मात्र भी नहीं था। जिनकी भक्ति से अथवा नाम लेने से ही भक्त लोग भी वासनाओं पर विजय पा लेते हैं। जिस तन की मूर्ति सजा कर मंदिर में रखी जाती है, उसका मन भी तो मंदिर के समान था।

श्रीकृष्ण केवल तन से ही देवता नहीं थे, उनके मन में भी देवत्व था। जिस श्रीकृष्ण के चित्र को देखते ही नयन शीतल हो जाते हैं, जिसकी मूर्ति के चरणों पर जल डाल कर लोग चरणामृत पीते हैं और उससे ही अपने को धन्य मानते हैं, यदि वे वास्तविक साकार रूप में आ जाएँ तो कितना सुखमय, आनंदमय, सुहावना समय हो जाए। परन्तु ऐसे सर्व गुण सम्पन्न श्री कृष्ण जी पर लोगों ने अनेक मिथ्या कलंक लगाए हैं कि श्री कृष्ण की 16108 रानियां थी, गोपिकाओं के वस्त्र चुराया करते थे, माखन चोरी करते थे..। वास्तव में गीता में यह महावाक्य है कि धर्म ग्लानि के समय फिर आऊंगा। अभी वहीं समय है जब सारी दुनिया ही कुरुक्षेत्र बन गई है। हर घर में दुर्योधन, दुशासन जैसे लोग है और भगवान गुप्त रूप में अपना सत्य धर्म की स्थापना का कार्य कर रहे है।

राजयोग भवन में आयोजित कार्यक्रम में अच्छे-बूढ़े सभी ने उमंग-उत्साह के साथ भाग लिया। मनुष्य शांति की खोज कर रहा है पर वह किसी दुकान में नहीं मिलती वह तो शांति के सागर परमात्मा से प्राप्त हो सकती है इसे सुन्दर नृत्य नाटिका के द्वारा प्रस्तुत किया गया। अंत में सभी को प्रसाद दिया गया।

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