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“इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर में राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन; कृषि मंत्री रामविचार नेताम की अध्यक्षता में।”

रायपुर, अमृत टुडे। प्राकृतिक और जैविक खेती आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है और यह विषय कई सामाजिक, आर्थिक, और पर्यावरणीय कारकों से गहराई से जुड़ा हुआ है। रासायनिक उर्वरकों का उपयोग केवल उतना ही होना चाहिए, जितना बिल्कुल आवश्यक हो, ताकि हमारे soils की उर्वरता और जैव विविधता को खतरे में न डाला जाए। किसानों में इस बात की जागरूकता लाना आज की आवश्यकता है, क्योंकि उचित जानकारी और संसाधनों के अभाव में वे कई बार हानिकारक रसायनों का चुनाव कर लेते हैं। जल संरक्षण के मुद्दे पर यदि समय रहते प्रभावी कदम नहीं उठाए गए, तो भविष्य में जल संकट और तेजी से बढ़ेगा, जिससे न केवल कृषि उत्पादन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, बल्कि इससे किसानों और आम जनजीवन भी प्रभावित होंगे।

राज्यपाल रमेन डेका ने आज प्राकृतिक खेती विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन कार्यक्रम में अपने विचार व्यक्त करते हुए इस महत्वपूर्ण मुद्दे की गंभीरता पर प्रकाश डाला। संगोष्ठी का आयोजन कृषि विकास एवं किसान कल्याण विभाग तथा इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर के सहयोग से किया गया था, जिसमें डेका मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता कृषि मंत्री श्री रामविचार नेताम ने की, जिन्होंने भी इस दिशा में ठोस कदम उठाने की आवश्यकता पर जोर दिया।

राज्यपाल डेका ने अपने संबोधन में कहा कि 1960 के दशक में जब देश खाद्यान्न संकट का सामना कर रहा था, तब हरित क्रांति ने इसमें बड़ी भूमिका निभाई। नए बीजों, रासायनिक खाद, सिंचाई और मशीनों के उपयोग के माध्यम से उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई, जो उस समय के लिए देश की एक बड़ा उपलब्धि थी। उन्होंने कहा कि हालांकि, किसी भी क्षेत्र में अति, विशेष रूप से रासायनिक खादों का अत्यधिक उपयोग, हानिकारक हो सकती है। आज रासायनिक खादों और माइक्रोप्लास्टिक के अत्यधिक उपयोग के कारण कई गंभीर समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं। इसलिए, जैविक और प्राकृतिक खेती की ओर बढ़ना अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि इससे फसलों का मूल्य संवर्धन होगा और किसान बेहतर लाभ कमा सकेंगे।

राज्यपाल ने कृषि के विद्यार्थियों से अपील की कि वे अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद जैविक खेती को अपनाएं, ताकि उनके माध्यम से अन्य किसान भी प्रेरित हो सकें। उन्होंने यह भी कहा कि आज के समय में जैविक खेती एक बड़ा व्यवसाय बन चुका है और इसे सही दिशा देने की आवश्यकता है, जिससे अधिक से अधिक किसान इस लाभदायक पद्धति को अपनाएं। अपने संबोधन में डेका ने छत्तीसगढ़ में जल दोहन की स्थिति पर भी चिंता जताई और कहा कि राज्य में भले ही अच्छी वर्षा होती है, फिर भी कई क्षेत्रों में पानी की कमी बनी रहती है, जिसे दूर करने के लिए ठोस कदम उठाए जाने की आवश्यकता है।

वर्षा जल को संरक्षित करने के लिए और अधिक प्रभावी उपायों को अपनाने की आवश्यकता है, जिसमें डबरी निर्माण जैसे अभिनव अभियानों को बढ़ावा देना प्रमुखता से शामिल है। इस संदर्भ में विचार करते हुए, उन्होंने कहा कि “पानी नहीं तो जीवन नहीं,” इसलिए यह स्पष्ट है कि जल संरक्षण एक अनिवार्य कार्य है, जिसे हमें गंभीरता से लेना होगा। संगोष्ठी में, कृषि मंत्री रामविचार नेताम ने इस बात पर जोर दिया कि आज की सबसे बड़ी चुनौती यह है कि हम प्राकृतिक खेती को व्यापक रूप से किस प्रकार बढ़ावा दे सकते हैं ताकि कृषि की टिकाऊ विधियों को अपनाने के लिए किसानों को प्रेरित किया जा सके।

उन्होंने यह भी बताया कि रासायनिक खादों के अत्यधिक उपयोग के कारण हमारे भूमि का स्वास्थ्य खराब हो रहा है, जिससे वह विषैली बनती जा रही है और कई प्रकार की बीमारियों का उदय हो रहा है। इसे देखते हुए, आने वाली पीढ़ी के कल्याण के लिए समय रहते सकारात्मक बदलाव करना आवश्यक है। इस दिशा में उन्होंने यह उल्लेख किया कि छत्तीसगढ़ सरकार जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए मिशन मोड में पूरी प्रतिबद्धता से कार्य कर रही है, ताकि कृषि के क्षेत्र में sustainable practices को लोकप्रिय बनाया जा सके।

अतिरिक्त रूप से, कृषि उत्पादन आयुक्त एवं सचिव शहला निगार ने राज्य में प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहित करने के लिए किए जा रहे विभिन्न कार्यों और पहलों की विस्तृत जानकारी साझा की, जिससे यह स्पष्ट होता है कि सरकार इस दिशा में ठोस कदम उठा रही है। अंत में, विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. गिरीश चंदेल ने इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम का उद्घाटन करते हुए स्वागत भाषण दिया, जिसमें उन्होंने किसानों को प्रेरित करने के संदर्भ में भी अपनी बात रखी। कार्यक्रम में पद्मश्री साबरमती सहित कई उत्कृष्ट किसानों को समर्पित सम्मान प्रदान किया गया, जो उनके अनुकरणीय योगदान के लिए एक प्रशंसा थी।

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